एक सच्ची कहानी...... @ गुरु बलवन्त गुरुने

© दोस्तों आइये आज आप को एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ, जो बहुतों के अक़्ल के दरवाज़े खोल दे गी।
कहानी द्वारा प्रदर्शित सत्य, 'तत्तसत्तश्रीअकाल' की कसौटी पे एक दम खरे उतरते हैं। 

बहुत लोग खुद को बड़े खानदानी, नोबेल, और नामवर बना कर पेश करते हैं, जब की होते वह अव्वल दर्जे के नीच और ठग्ग हैं। वह लाख होशियरियां क्यों न करें,  लेकिन एक पारखी आँख सब कुछ देख लेती है।

इस से पहले कि मैं आप को कहानी सुनाऊँ, एक सच्ची घटना आप से शेयर करता हूँ,  जिस का मैं चश्मदीद गवाह हूँ। 
क्यों की इस सच्ची घटना का  सारा खेल मेरे जानकार सर्कल में खेला जा रहा था तो मैं भी इस से अनभिज्ञ न रह पाया।
यह एक ऐसे मध्य वर्गीय परिवार का  किस्सा है, जिस का पिता बहुत ही लालची और गुरु घण्टाल किस्म का इन्सान है।

उस ने देहली के एक नामवर कालिज में पढ़  रही अपनी बेटी को उम्र में लड़की से काफ़ी बड़े, लेकिन सम्भवतह,  मालदार राजनितिक व्यक्ति के बेटे के साथ विवाह करने के लिए प्रेरित किया।

लड़की की माँ, बाप से भी ज्यादा लालची थी। उसे किसी राजनितिक परिवार से सम्बन्ध बनाने का क्रेज़ थ। माँ बाप ऊँचे खानदान (दरअसल एक फ्रॉड, दबंगई, तस्कर और बदनाम परिवार ) और मालदार जवाई पाने के चक्कर में इस रिश्ते के लिए लपक लिये। शादी हुई और कुछ ही दिनों में लालच दाव खेलने लगा।

लड़की के माँ बाप ने अपने जवाई को मोहरा बना कर अपने सके भाइयों की ज़मीन जयदाद बहुत ही बेशर्मी से हड़पनि शुरू कर दी। 

एक दिन जवाई ने लड़की के चचा, जो मेरे करीबी हैं से, मिलने की सिफारिश की, लेकिन जब चचा ने अपने भाई के जवाई को मिलने के लिए अपने निवास पे आमन्त्रित किया, तो जवाई ने घर आने की जगह किसी महंगे कॉफी हाउस में मिलना चाहा।

इस बात को मेरे मित्र ने नोटिस किया और मुझ से सलाह की। मैं था तो बाहिर का आदमी लेकिन मित्र के अनुरोध पर उस के साथ चलने को तय्यार हो गया।

जब हम लोग कॉफ़ी हाउस में पहुंचे, तो दुआ सलाम के बाद ही मैंने नोटिस किया की मित्र के भाई का जवाई, बातों से प्रगट कुछ और कर रहा था, लेकिन उस की आँखे कुछ और ही प्रगट कर रही थी।

यानि उस ने सारी बात अपना रुआब दिखाने से शुरू की। खुद को एक बड़ा भारी सियासी आदमी बताया, हमारे ही सामने एक (फ़र्ज़ी) SDM से टेलीेफ़ोन लगा कर, न सिर्फ उस पे रौब जमाया बल्कि उस से 15 पुलिस वाले भी, कहीं किसी ज़मीन पे कब्ज़ा लेने के लिए भेजने को कहा। मैं खुद सरकारी महकमे में अधिकारी रहा हूँ, तो मैं एक दम समझ गया की दाल में अवश्य कुछ काला है।

ख़ैर इतने में मेरे मित्र के भाई की पत्नी और बेटी, यानी जवाईं राजा की पत्नी और सास भी आ पहुंचे। उन के हाव भाव काफी चिंतित थे, जैसे किसी सेंध लगा कर चोरी करने वाली गैंग मेंबर्ज़ के होते हैं, वह भी तब, जब गैंग चोरी करने में जुटी हो, और गैंग की महिलाएं असली काण्ड से लोगों का ध्यान बंटाने में जुटी हों।

  कभी मेरे मित्र के भाई की बेटी, पत्नी और जवाई,  मेरे मित्र से कहते की हम चाहते हैं, आप की ज़मीन आप को मिल जाये, लेकिन बज़ुर्ग ऐसा नहीँ चाहते।  हम ये चाहते हैं, हम वो चाहते हैं,  हम तो बहुत ईमानदार हैं, या कभी कोई और बात, जिस का सम्बन्ध मित्र की और उस के भाई की जयदाद से हो। यह सब चलता रहा।

यह मीटिंग कोई 4 घण्टे चलती रही। आखिर मैंने मित्र को चलने का इशारा किया, और बाहिर आ कर उस से कहा की भाई, यह सभी लोग निहायत लालची और बेईमान किस्म के लोग हैं, या यूँ कहिये की नहले पे दहला हैं।

मैंने उसे बताया, कि आज जब ये सब तुम्हें काफ़ी शाप में लिए बैठे थे, उस ही दौरान तुम्हारे भाई ने तुम्हारे साथ कोई फ्रॉड रचा है।  

पहले तो उसे विशवास नहीं हुआ, लेकिन शाम तक रिश्तेदारों द्वारा उसे सूचना मिली की बूढ़े और लाचार बाप द्वारा, पहले न सिर्फ मेरे मित्र के भाई ने, मेरे मित्र को अपने परिवार से बेदखल करवाया, बल्कि कथित दिन जब बेटी, माँ और जवाई, हमें काफी हाउस में लिए बैठे थे, मित्र के भाई ने उस की जद्दी जमीन अपने नाम लगवा ली थी।

जब मेरे मित्र ने अपने भाई से फ़ोन पर बात करनी चाही, तो उस के भाई ने बस यह कह कर फोन काट दिया की भाई, मैं तो मजबूर हूँ, यह सब तो मेरे जवाई का किया धरा है।

मेरा मित्र परेशान ती बहुत हुआ, लेकिन मुझ से पूछने लगा की भाई आप यह सब कैसे जान गए थे, और आप ने इतने कॉन्फिडेन्स से मुझे कैसे बता दिया, कि मेरे साथ क्या बीत रही है।

मेरा सरल जबाब था, मेरी शब्दों से अशब्दों तक पहुंचने की कला, और आव-भाव से परे देखने की शक्ती के चलते ही, मैंने तुम्हें एक सटीक सत्य से अवगत करवाया। 

इस पे आगे के आसार पे बात हुई और उस ने मुझ से कहा की इन सब में सब से ज्यादा शातिर कौन है, खुद को सियासी बताने वाला जवाई, या मित्र का भाई, तो मैने हंस कर कहा की तेरा भाई, उस की लड़की और माँ। 

वह तपाक  से कह उठा, कैसे?
मेरा जबाब था की अगला शिकार जवाई ही है। वह राजनितिक परिवार से है। यदी लड़की, जो अभी बहुत जवान और खूबसूरत है, किसी तरहं विधवा हो जाती है, तो उस के प्रती, न केवल सहानुभूती पैदा हो गी, बल्कि उस के लिए राजनीती में प्रवेश के रास्ते भी खुल जाएं गे।

यह सुन कर मेरे मित्र का मुंह खुला का खुला रह गया। उस से रहा न गया, और बोला, गुरु जी, यह सब आप कैसे बूझ गए, तो मैं कह उठा, भाई यह कहानी सुन, और तू भी ऐसे सत्य बूझने के काबिल हो जाये गा। कहानी क्या सुननी थी, वह शाम को ही नारियल मौली ले आया, और मुझे अपना गुरु बना कर ही माना।

जो सूफ़ी दर्वेशी किस्सा मैंने अपने दोस्त को सुनाया, वह आप भी सुनिये।

एक अजनबी नौकरी  की तलाश में किसी राजा के दरबार में पहुंचा। राजा ने जब अजनबी से उस की योग्यता पूछी, तो वह बोला, राजन,"मैं एक सियासी अय्यार हूँ।" (अरबी में सियासी का अर्थ होता है अक्ल से मामला हल करने वाला दूरदर्शी  तथा अय्यार  का मतलब है, मायावी इन्सान।)

राजा के पास दरबारियों की तो पहले ही भरमार थी, लेकिन कुछ और बातचीत के उपरांत अजनबी को घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज बना दिया गया। व्ही स्थान खाली भी था।

चंद दिनों बाद राजा ने जब अजनबी से अपने सब से महंगे और प्यारे घोड़े के बारे पूछा, तो उसने कहा, "राजन आप का घोड़ा ख़ालिस नस्ली आदतों वाला नहीं है, इस में किसी गाय भैंस का भी असर हैै।" 

बादशाह को बहुत ताज्जुब हुआ, उसने घोड़ों की ख़ास जानकारी रखने वालों को बुला कर घोड़े की सम्पूर्ण जांच करवाई, तो पता चला की  घोड़ा है तो नस्ली,  लेकिन इस के पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी, चुनाँचे घोड़ा गाय का दूध पी कर पला है।

राजा ने अपने सियासी को बुलाया और पूछा के भाई तुम को कैसे पता चला कि घोड़ा ख़ालिस नस्ली आदतों वाला नहीं हैं ?"

उसने जबाब दिया कि ऐ राजन, जब यह घोड़ा  घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे कर के खाता हैे, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।

राजा उसकी परख से बहुत खुश हुआ।  राजा ने सियासी के घर अनाज ,घी, भुने  हुए बदाम और अच्छा मांस बतौर इनाम भिजवाया।

अब राजा नेे 'सियासी' को रानी के महल में तैनात कर दिया।  चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, तो उसने कहा, "राजन, आप की रानी के तौर तरीके तो रानीयों जैसे हैं, लेकिन फ़िर भी वह राजपरिवार में जन्मी राजकुमारी नहीं  हैं ।"  राजा के तो पैरों तले से जमीन ही निकल गई। 

उस ने अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, तो सास ने कहा कि यह सच्च है। आप के पिता ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी छे माह में मर गई,  लिहाज़ा हम ने राजपरिवार  से करीबी रिश्ते क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।"

अब राजा ने सियासी से पूछा, के भाई तुम को कैसे जानकारी हुई  कि रानी असली राजा की बेटी नहीं, तो उसने कहा, "रानी का नौकरों के साथ सुलूक मूर्खो का सा है। या तो ज्यादा ही रीझती है और या ज्यादा ही तुनकती है।  एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का तरीका एक विशिष्ठ शिष्टाचार से लवरेज होता हैं, जो उस के खून और पॉलन पोषण के बैकग्रॉऊँड को दर्शाता है। रानी का पालन पोषण तो महलों में हुआ है, लेकिन इस का खून,  इस का अपनी माँ के दूध का असर, और बचपन में कभी कभार रानी के माँ बाप का महलों में आ कर रानी से मिलना, यह सब इन्ही बातों का असर  है।

राजा पुन्ह सियासी की परख से खुश हुआ और बहुत सा अनाज , भेड़ बकरियां और ऊनी कपड़े बतौर इनाम उसे दिए, साथ ही उसे अपने दरबार में मुख्य-सियासदान के पद पर नियुक्त कर लिया।

कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने सियासी को पुन्ह बुलाया, और इस बार उस ने अपने बारे में जानकारी चाही। 

सियासी ने कहा, 'राजन पहले जीवनदान का वचन दो, और मृत्यु भय से मुक्त करो, यदी मंजूर हो तो बताऊँ ।"  राजा ने वादा किया तो सियासी बोला,"न तो आप राजा के पुत्र हो, और न ही आप में सम्पूर्ण राजगुण  हैं।"

राजा को ताव तो बहुत आया, लेकिन जीवनदान दे चुका था। वह सीधा अपनी माँ के महल में पहुंचा और सत्य जानने की प्रार्थना की।

माँ ने कहा, कि सियासी  सच बोल रहा  है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी कोई औलाद नहीं थी, जिस के चलते  तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला । अब राजा का गुस्सा तो शांत हो गया, लेकिन फ़िर भी उस ने सियासी को बुलाया और पूछा  की बता भाई, यह सब तुझे कैसे पता चला?

सियासी हंसते हुआ बोला, "राजन  जब कोई बादशाह किसी को इनाम दिया करते हैं, तो हीरे, मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं, लेकिन आप भेड़, बकरियां, अनाज, खाने पीने की चीजें और ऊनी वस्त्र ही देते हैं, ये चलन किसी राजा के बेटे का नही बल्कि  किसी चरवाहे के बेटे का हो सकता है। दूसरा यह कि आप में व्यक्ती को गहराई से पहचानने की क्षमता में कमी है, अगर ऐसा न होता तो, जो सत्य मैंने आप पे ज़ाहिर किये, वह सभी आप ख़ुद ही जान गए होते।"

यानि, एक इंसान आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बहुत शक्तिशाली होने के उपरांत भी, अगर छोटी छोटी चीजों को न समझ सके, या तुच्छ पदार्थों के लिए अपनी नियत खराब कर ले,  इंसाफ और सच्च की कदर न करे, जो अपने पे उपकार और विश्वास करने वालों के साथ दगाबाजी करे,  या अपने तुच्छ फायदे और स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरे इंसान को बड़ा नुकसान पहुंचाने की लिए तैयार हो जाये,  तो समझ लीजिए, खून में बहुत बड़ी खराबी हैं ।

इन्सान का बोलचाल और व्यवहार तो पीतल पर चढ़ा हुआ सोने का पानी मात्र ही हुआ करता है।


संक्षिप्त मेँ बात यह है, कि किसी इंसान के पास कितनी भी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, या बाहुबल इत्यादी क्यों न हो, इन्सान का असली चरित्र, उसकी नीयत से ही मालूम होता  हैं। 

याद रखिये,  ख़ानदानी लोग कभी भी बदनीयत नहीं होते।
🚩तत्तसत्त श्री अकाल🚩
📿गुरु बलवन्त गुरुने⚔

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