योग की कहानी, सूफीयों की ज़ुबानी... ©✒ द्वरा गुरु बलवन्त गुरुने.

योग की कहानी, सूफीयों की ज़ुबानी...
©✒ द्वरा गुरु बलवन्त गुरुने.

©मित्रो योग विद्या का सब से महानतम प्रमाणित ग्रन्थ पतंजलि योग सूत्रम को माना गया है। वैसे तो यह केवल 195 लघु सूत्रों का किताबचा मात्र ही है, जो परम्परागत 10,000 साल से भी पुराना है, लेकिन यदि इन सूत्रों की पूर्ण व्याख्या की जाए, तो जो ग्रन्थ उत्पन हों गे, उन के लिये कोई लाइब्रेरी भी कम पड़ सकती है।

महर्षि पतंजलि ने अपनी रचना के दूसरे अध्याय ' साधना पद' के तीसरे श्लोक में कहा है, " अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेशः कलेशाः"। यानि साधना के पथ में सब से बड़े कांटे, सब से बढ़ी रुकावटें हैं, अविद्या या इग्नोरेंस, अस्मिता यानि अहंकार या ईगो,  राग यानि अटैचमेंट, द्वेष यानी अवर्सन(Aversion), तथा अभिनिवेशः, यानि desire यानि जीवन और जीवन भोग की सामग्री से जुड़े रहने की कामना और मृत्यु का भय।। इन में से ज्यादा तर को सरल रूप में तो सभी समझते हैं लेकिन गूढ़ ज्ञान तत्व दर्शन के नज़रिये से यह सभी चिंतन और चर्चा का अलग और विस्तृत विषय हैं।

आज मैं जिस विशेष विषय वस्तु को ले कर आप से मुखातिब हूँ, वह है,  द्वेष यानी अवर्ज़न, (Aversion, Hate, Repulsion).

द्वेष अपने आप में एक विस्तृत विषय वस्तु है, और इस का स्वरूप रक्तबीज राक्षस सा है, यानि जितना इसे खत्म करने की कोशिश करो, उतना ही यह बढ़ता है, और फलताफूलता है, क्यों की द्वेष से अहंकार पैदा होता है, और लालच और प्रतिस्पर्धा द्वारा यह स्वयं पैदा होता है, यानि लालच और प्रतिस्पर्धा इस के माँ बाप हैं, और इस के दादा दादी डिज़ायर और अविद्या, यानि इग्नोरेंस हैं।

तो आज मैं द्वेष, द्वारा निर्मित मनोविकारों को सम्बोधित करने और उन के निवारण हेतु, बिम्ब स्वरूप एक  कथा सुनाता हूँ। इस कथा को मैनें इक नए रूप में ढाल दिया है, तांकि यह द्वेष-शंका भेदन का यन्त्र बन सके। तो लीजिये सुनिये और समझिये।

 इत्तेफ़ाकन मैं एक दो पैग लगा कर घर की तरफ़ जा रहा था कि रास्ते में  मौलवी साहब, पण्डित जी और ज्ञानी जी, तीनों एक साथ  मिल गए।

मौलवी जी कहने लगे: मियाँ, तुम शराब पीते हो, तुम जहन्नुम में जाओगे।

इस पर मैंने पूछा: जनाब, लेकिन कोई शराब बेचता है तभी तो मैं ख़रीदता हूँ। उस सूफी रहीम खान का क्या होगा जो शराब बेचता है?

मौलवी जी: वो भी दोजख़ की आग में जलेगा।

इस पर मैंने पूछा: तो उस ज्ञानी प्रकाश सिंह  का क्या हो गा जो शराब की दुकान के बगल में चिकन कबाब और मटन करी बेचता है, उस ने तो दुकान का नाम ही 'ज्ञानी दा ढाबा' रख छोड़ा है ? और सारे शराबियों को रोटी बोटी के बाद, गुड़ के  कढ़ा के दो चम्मच मुफ़्त देता है, और  वह तो मटन मीट को भी महाप्रशाद कहता है ?

अब के ज्ञानी  जी बोले,  वो तो जी, सौ फ़ीसदी नर्क विच जायेगा।

मैंने फिर पूछा: और वो नाचने वाली गंगा बाई, उस का क्या ?

अब पंडित सीताराम जी बोले: राम राम, गंगा जिस का नाम, मैले उस के काम,   वह तो पक्का नर्क  में जाये गी।

अब मुझ से न रहा गया, मैं बस इतना ही बोला, "तो मित्रो, फिर क्या दिक़्क़त है जहन्नुम, नर्क या दोज़ख  जाने में ?"

जब इत्तेफ़ाक़ से शराब वाला , यानि दारू वाला , जो न जाने कितने ही लोगों को उन के तन और मन की पीड़ा से मुक्ति दिलवाता है, भले ही कुछ देर के लिए ही सही ,  और कबाब वाला, जो दुनिया को ज़िंदा रखने के लिए, और ज़माने भर की  स्वाद तृप्ति के लिए न जाने कितने ही जानवरों के कत्ल का भार अपने सर लेता है, और वह  पाप नाशिनी गंगा, जो अनेकों अबलाओं को बलात्कार से बचाती है, अपने जिस्म से ज़माने भर की हवस की आग को ठण्डा कर के,  जो न ज़माने के पाप धोते धोते ख़ुद कितनी मैली हो गयी, अगर इन सब महान हस्तियों को दोज़ख ही नसीब हैं, यदि यह स्तकर्मी सब वहां ही हों गे, तो मैं भी वहाँ ही जाना पसन्द करूँगा।

तीनों मित्र तब से मेरे साथ ही बैठे हैं, ज्ञानी जी दो पेग के बाद सलाद काट रहे हैं, पण्डित जी अंडे की भुर्जी बना रहे हैं और  मौलवी जी मोबाइल पर और मदिरा का इन्तज़ाम कर रहे हैं।  सेल्फ़ी लेने से मुझे तीनों ने सख्त मना किया है।।
🚩तत्त सत्त श्री अकाल🚩
🕊 गुरु बलवन्त गुरुने🏹

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