किस्सा आधुनिक सूफ़ीयों का..... ©✒ द्वारा गुरु बलवन्त गुरुने ⛩

किस्सा आधुनिक सूफ़ीयों का.....
©✒ द्वारा गुरु बलवन्त गुरुने ⛩

© आज कल जहां देखो सूफ़ीयों का बोलबाला है। सूफ़ी और ज़ेन, यानि सूफी कॉर्नर, सूफ़ी प्लेस, सूफ़ी या ज़ेन ढाबा, सूफ़ी या ज़ेन केफे वगैरा वगेरा। थोड़ा पहले ऐसा ही अद्वैत दर्शी लोगों के साथ था। उपनिषद के नाम पे कोई कुत्ता भी भोंके तो 8 या10 लोगों की साध संगत तो जुट ही जाती थी।


इसी परम्परा के चलते लोगों ने हठ योग की साधारण क्रियाएँ जैसे की प्राणायाम की एक दो विधिआं चक्रम बाज़ी के चलते विभिन नामों से, जैसे पदर्शन क्रिया या नाडी सम्यता क्रिया (असली नाम मैंने छुपा लिए) इत्यादि के नाम से बेचीं।

तो मित्रो आज कल सूफ़ीयों का बाजार गर्म है।

माता की भेंट गाने वालों से देहली के रेसटोरेंटों में गाने वाले सब सूफ़ी गायक बन चुके हैं। कोई जॉन-लेनन के नग्मों की गिरह सीधे नानक और कबीर से लगा रहा है तो कोई सूफी गॉस्पेल के नाम पे वाहेगुरु सतनाम और हालेलुया की खिचड़ी अध्घड़ श्रोताओं को परोस रहा है।


सूफी परम्परा से प्रेमसम्बन्ध के चलते हम भी चंडीगढ़ के मशहूर टैगोर थिएटर में सूफ़ी गॉस्पेल का आनंद लेने चले गए। गए तो इस उम्मीद में थे कि सूफी गुरुओं की बाणी श्रवण करने को मिले गी लेकिन निकला वोही , सूफी गॉस्पेल के नाम पे सूफी गोलमाल।

गॉस्पेल का ईसाई अर्थ तो ईसू द्वारा दी गयी शिक्षा है लेकि गॉस्पेल श्ब्द का अर्थ किसी भी रूहानी या धार्मिक गुरु की टीचिंग भी है। अब यदि नाम सूफी गॉस्पेल रख ही लिया तो कम से कम सूफी पीरों फ़क़ीरों की बाणी तो गाओ, लेकिन नहीं। गायिका मैडम पैकेजिंग एक्सपर्ट निकली, जिन्हों ने जो भी अंग्रेजी मोठ मसरी उन के पास है, उसे सूफ़ीयाना सा नाम दे कर जन्ता को परोसना शुरू कर दिया है।

देहली के 3 या 5 सितारा ढाबों में अंग्रेजी गाने गाने वाली महिला, बीच में ही सिक्खनी होने का दावा और बीच में ही हालेलुइआ का नारा लगा कर न सिर्फ समदर्शिता का बोध करा रहीं थी बल्कि सूफ़ी गॉस्पेल के नाम पे अपनी अंग्रेजी एक्सेंट और गाने दोनों परोस रही थी।

मेरी बगल में बैठी तीन चार अधेड़ महिलाएं ऐसे खुश हो रही थी जैसे किंडर गार्डन के बच्चे जैक एंड जिल सुन कर झूम उठते हैं।

 आया हाय, आये हाय, मैं मर जाऊं इन भूरि अंग्रेजनों पे, जैसे ही स्टेज पर बैठी हमारी सूफ़ीयाना बेब कुछ अंग्रेजी में गाती, तो ये महिलाएं तो यों थिरक थिरक जाती, जैसे उन की  जन्म जन्म की अंग्रेज़ी भजन भक्ति की प्यास आज ही पूरी हुई हो।

तो साहिब हम भी लगे सर हिलाने और ताली पीटने , इस डर से कि साले सब नकली भक्तों में हमें कोई असली समझ कर महफ़िल से न उठा दे।

तीन दिन चले सूफ़ी उत्सव के नाम पे पहला दिन वाहियात निकला। दूसरा दिन भी कोक स्टूडियो टाइप सूफ़ीयों ने खा लिया। भाई साहिब ने टैगोर की नानक और नानक की जॉन लेनन से खूब गिरहै लगाई, यानि नेशनल और इंटर नेशनल यूनिटी भी और वोही पुराना फ़ॉर्मूला, सूफ़ी खिचड़ी को अंग्रेजी तेल का तड़का।

आखिरी दिन कुछ शुद्ध गायकी और शुद्ध सूफ़ी कविता सुनने को मिली। पण्डित मधूप मुदगल की गायकी और शुद्ध नानक और कबीर की रचनाओं ने मन्त्रमुग्ध किया।

पहले दो दिन के कार्यक्रम को देख कर सूफ़ी मस्तम दरुस्तम को यह कथा याद आ गयी। आप भी आनंद लीजिये।

सूफ़ी मस्तम दरुस्तम  के पुत्र ने अपने पिता से कहा कि डैडी आप बेकार में शायरी,वायरी किया करते हैं। उसे आजकल कौन समझता है। आजकल के सूफ़ी तो सूफ़ी मुखड़ों को फिल्मी गानों में लाकर लाखों कमा रहे हैं। आप इधर ट्राई क्यों नहीं करते

सूफ़ी बोले, ‘‘बेटा वहां मैं ट्राई कर चुका हूं। गीतकारों और म्यूजिक डायरेक्टरों ने बड़ी सांठ-गाठं कर रखी है। वहां किसी की दाल गलना मुश्किल है।’’

बेटा बोला, ‘‘वो सब छोड़िए आप सूफ़ी डांस के एरिया में क्यों नहीं निकल जाते, मैं बैंड पकड़ लुंगा। सिस्टर और आप सूफ़ी डांस करें। मां एंकर हो जाएंगी। छोटू पब्लिसिटी में लग जाएगा। दादा जी को बुकिंग विंडो पर बैठा देंगे।’’

मस्तम दरुस्तम का एक ही जबाब था, कि बेटा, अगर हम भी इस कंजरखाने में पड़ गये, तो हमारी मस्ती के जो कारखाने चल रहे हैं, उन्हें भला कौन चलाये गा ?

🕊 तत्त सत्त श्री अकाल 📿
🕊 गुरु बलवन्त गुरने 📿
उर्फ़
🎅 बाबा मस्तम दरुस्तम⛩
सब को मेरी दुआ, रहो तन्दरुस्तम।

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