'सब माया है, सब माया है... द्वारा✒गुर बलवन्त गुरुने⚔

'सब माया है, सब माया है... © द्वारा✒गुर बलवन्त गुरुने⚔

आज  देश की उम्र कोई 70 वर्ष है, आधुनिक लोक तान्त्रिक और जनतांत्रिक व्यवस्था यही कोई 200 साल पहले ही पैदा हुई है,  राजशाही भी कुछ हज़ार साल पुरानी है,  कम्युनिज़्म तो अभी कल ही की बात समझो। यानी जो दिखता है, बस कुछ ही देर पहले अदृश्य था।

 सुना है, यूनान में लोकशाही और भारत में जनपद व्यवस्था पहले भी रही है, लेकिन कुल मिला कर यह सब इन्सान के समाज को व्यवस्थित करने के ज़रिये ही हैं, इन्सान, जैसा आज है वैसा तो बस कुछ सौ साल पुराना है, और जो उस से पहले बन्दर से इंसान बना मनुष्य है, वह भी बस कुछ हज़ार  वर्ष पुराना ही है,  यानि इंसान का अहंकार बस अभी अभी पैदा हुये इन्सान के साथ ही पैदा हुआ है, लेकिन धरती लाखों साल पुरानी है, और उस से पहले, न जाने कब से कब तक, क्यों और क्या क्या, कहां कहां, बनता बिगड़ता रहा है।

 यानी जो आज नहीं दिखता, वह ऐसा नहीं की कभी था ही नहीं, लेकिन जैसा अब दिखता है, वैसा कभी नहीं था।

केवल 100 साल में आदमी गधों खच्चरों से पहले साइकल, स्कूटर, कार, रेल, हवाई जहाज तक, और आज उस से भी आगे,  इंटरनेट और ड्रोन्स की दुनिया तक आन पहुंचा है।

 कभी सिनेमा जाना एक विशेष बात थी, आज घर घर में होमथियेटर है, औऱ यह भी याद रहे कि यदि कोई  विधवन्स हुआ, तो इस सब को स्वःहा होने में, 5 दिन भी नही लगें गे।

 यानी हमारा सन्सार  अत्यन्त संवेदनशील, बहुत जल्दी बदलने वाल और  जल्दी ही नष्ट हो जाने वाली मायानगरी  भर ही हे, लेकिन इंसान की फ़ितरत है की वह इस छल जगत की छल वस्तुओं, छल सामग्री,  तथा छल और चलायमान व्यवस्था व् विचारों तक के लिए लड़ता झगड़ता है, और केवल किसी विचार को खत्म करने की नासमझ से कोशिस के चलते विचारशील व्यक्ति की हत्या तक कर देता है।

आज कल भी लोग रंग की, धर्म की, जात पात की, इलाके की, भाषा की बात पर लम्बी बहस करने लगते हैं, लड़ने झगड़ने लगते हैं, कुछ ऐसे अंदाज़ से, जैसे की,  न जाने उन की इन मुद्दों पे समझ, पहली और आख़िरी हो।  यही सब से बड़ी नासमझी है।

भाषाएँ, धर्म, जात बिरादरी, देश प्रदेश, और यहां तक की नदियां और पहाड़ तक भी बनते बिगड़ते रहते हैं। रेगिस्तान और जंगल अपनी हस्ती मिटाते बनाते रहते हैं,  संस्कृतियाँ और सभ्यताएं बनती मिटती रहती हैं, तो इंसान और इन्सान द्वारा ख़ुद को व्यवस्थित करने के तन्त्र या तन्त्रों की तो बात ही क्या कहनी, या करनी।

अब कुछ लोग जनतन्त्र को या लोक तन्त्र को आज तक की बेहतरीन व्यवस्था कहते हैं।  कोई कहता है, राजशाही बेहतर हैं, कोई सामन्तवाद का तो कोई समाजवाद का पक्षधर है।

लेकिन याद रहे, यह सभी व्यवस्थाएं अपनी ताकतें और कमज़ोरियाँ रखती हैं।

अब यदी कोई  राजवाड़ाशाही  ही हो, लेकिन उदारवादी हो तो वह निश्चित ही किसी भी पागल तानाशाह से बेहतर है, इस ही प्रकार यदि किसी देश में हो तो जनतन्त्र, लेकिन ऐसा जनतन्त्र  जो KLEPTOCRACY (चोरों का राज्य ) या KAKISTOCRACY (यानी अयोग्यता का या नालायकों का राज्य) हो, या बन जाये, तो  ऐसा जनतन्त्र तो गुणवान राजशाही या तानाशाही,  सभी से बदत्तर है।

कोई भी जनतन्त्र जब  गुण या अवगुण को, योग्य और अयोग्य को, शिक्षित या अशिक्षत को,  चोर और चकोर को, नालायक और लायक को, ईमानदार व बईमान को,  सरकार चुनने का बराबरी का हक़्क़ दे दे, तो समझो मामला गड़बड़ है।

ऐसे जनतन्त्र में, सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो,  नालायकों, बेईमानों, चरित्रहीनों और कपटी लोगो की ही सरकार बनती हैं, जिन के पास ताकत हासिल करने का एकमात्र उपाय, जन्ता में लड़ाई करवाना, तकरार पैदा करना,  आपसी मतभेद और टकराव पैदा करना,  झूठे वादे, जुमले बाज़ी, गुरु हत्या और असूल हत्या, इत्यादि ही हुआ करता है।

  यह लोग कभी देसभक्त होने का, तो कभी धार्मिक होने का,  कभी समाजवादी तो कभी सेक्युलर होने का नाटक तो अवश्य करते हैं, लेकिन दरअसल यह सभी लोग, जात-पात, राष्ट्रवाद, धर्म, जाती  और इलाक़ावाद, भाषा, वेश-भूषा, भोजन,  और  सम्प्रदाय की राजनीती करते हैं, यानि इन सभी को और 'तोड़ो और राज करो' के फॉर्मूले के ईंधन के रूप में का इस्तेमाल करते हैं।

सरकार ने  हर  झगड़े झेंडे को बढ़ाने के लिये कुत्ते बिल्ले पाले हुए होते  हैं, फ़िर वह कोई भी भाषा हो,  धर्म हो, इलाक़ा हो या कोई भी और मसला, सभी में इन official dogs and cats का इस्तेमाल किया जाता है, कहीं झूठ को फैलाने के लिए तो कहीं सच्च को दबाने के लिए, और यह सब इस लिए,  क्यों की सरकारें भृष्टाचारी हैं, बस यही सच्च नहीं है, बल्कि सच्च तो यह है, कि भ्र्ष्टाचार के लिये ही सरकारें है।

  जब जरूरत पड़े तो 'किसी भी  राजनितिक दल' की सरकार  किसी भी बात को तूल देने के लिए अपने पालतू कुत्ते बिल्लियों का इस्तेमाल करती है, मसले को जहां तक बढ़ाना चाहें, बढ़ाती  हैं, एंवम अपना उल्लू सीधा करने के बाद, इन कैटस का इस्तेमाल करने के बाद इन्हें, आतंकवादी या गैंगस्टर कह के मरवा भी सकती है।

बाकी सब कानून वानून, न्याय व्याय, ह्यूमन हक़्क़ हकूक की बातें, सब ही कुछ, कोरा और निरर्थक बकवास है।

यही  हमारे जनतन्त्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था का सच्च है।
इसे कोई नहीं झुठला सकता, लेकिन कोई फ़लसफ़ा प्रेमी बस यह कह कर निरर्थक अबश्य कर सकता है,
 'सब माया है, सब माया है.'
📿तत्त सत्त श्री अकाल 🏹
🕊 गुर बलवन्त गुरुने ⚔

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