फेसबुक पर एक मित्र, जनाब सय्यिद शाहिद ने, भारत में बराक ओबामा की भारत यात्रा के सन्दर्भ में कुछ ऐसी टिपणी की। क्या उन का 1200 अमेरिकी सैनिक साथ लाना हमारी भारतीय आर्मी कि काबलियत और बहादुरी पर प्रश्न चिन्ह लगाने के समान नहीं है ? ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई 'शांति दूत' अपनी आर्मी को साथ लेकर भारत यात्रा पर है, क्या ये भारतीय सेना की काबिलियत और भारतीय खुफिया एजेंसीज का अपमान नहीं ... प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने हवाई अड्डे पर ख़ुद ओबामा की अगवानी की.. वगैरा वगैरा------------
मेरा इतना ही कहना है -------- पहले तो ये की बराक ओबामा भारत में कोई शांती वांती दूत बन कर नहीं आये हैं। विश्व बड़ी विषम परिस्थियों में से गुज़र रहा है। एक ओर आतंकवादी शक्तियां पुनर्गठित हो रही हैं तो दूसरी और विशव स्तरिय शक्तियां जिन में अमरीका, चीन, भारत, ब्राज़ील, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस इत्यादि मुख्य हैं, नए सिरे से अपने स्ट्रेटजिक इंटरस्ट्स को मध्य नज़र रखते हुए, अपने आप को पुनःआयोजित करने में जुटी हैं। ओबामा का भारत दौरा हमारे साथ स्ट्रेटेजिक अलायन्स स्थापित करने की तरफ उन का एक जबाबी कदम है, जिस काम की पहल नमो अपने अमेरिकी दौरे के दौरान कर चुके हैं। इस के इलावा बिज़नेस और न्यूक्लिअर समझौतों को पुनःआयोजित करने की नयी राहें तलाशने और स्थापित करने की ओर भी ये दौरा ओबामा का एक बड़ा कदम है।
अब रही बात उन के लाओलश्कर की। अमरीकी राष्ट्रपति कोई छोटी हस्ती नहीं हैं। उन्हें विश्व का सब से ताक़तवर देश प्रमुख और सेना नायक माना जाता है। अमेरिका एक समय में एक नहीं, बल्कि विश्व के कई हिस्सों में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है रहा है। इस युद्ध में पहली बार कुछ सार्थक आयाम कायम होने जा रहा है, जिस का अमेरिका और इजराइल के साथ भारत एक अभिन्न अंग है। बहुत से भारत और अमेरिका के दुश्मन इस दौरे को सबोटेज करने की धमकियां दे रहे थे , तो इतना लाओलश्कर तो बनता है भाई।
हमारे देश में आज़ादी के बाद, काफी देर तक किसी किस्म के आतंक का कोई माहौल न था। फिर अलगाववाद के चलते, तथा भारत के खिलाफ पाकिस्तान की प्रॉक्सी वॉर की पालिसी के चलते देश में, और जिहाद के नाम पर विशव भर में अत्तंकवादी गुटों ने न केवल राजनेताओं को बल्कि आम लोगों को भी शिकार बनाना शुरू किया। इस माहौल में किसी भी देश के सुरक्षा विशेषगय अपने नायकों की सुरक्षा हरगिज़ दाव पर नहीं लगा सकते
विशव भर में आज जहां एक ओर आतंकी संगठित होते जा रहे हैं वहीँ दूसरी और आतंक के खिलाफ विश्व भी संगठित होता जा रहा है। हालत ये है कि आज बाएं बाजू तंजीमें, जिन का इस्लाम या इस्लाम की सोच, या किसी भी धार्मिक सोच के साथ कोई लेना देना नहीं है, वो भी आपस में गुटबाज़ी के इलावा इन भटके हुए जेहादिओं के साथ संगठित हो रहीं हैं। इस के चलते आतंकवाद ने एक नया रूप अख्तियार कर लिया है, जिसे हम ग्लोबल टेररिज्म के नाम से जानते हैं।
आज दो किस्म के आतंक वादी आप को मिल जाएँ गे। पहले तो वो आतंकवादी, जो ब्रेन वाशड धार्मिक कट्टड पंथी हैं, जो जिहाद या धर्मयुद्ध के फलसफे को पूरी तरहं समझे बिना, निकल पड़े हैं, सर पे कफ़न बांधे, अपनी आधी अधूरी सोच का परचम लहराने। ये लोग निहत्थे और मजबूर लोगों का क़त्ल कर के खुद को गाज़ी या सूरमे समझते हैं। ऐसे ही नासमझ और बेवकूफ आतंकवादिओं के हाथों ही मैंने अपने परिवार के सदस्य , पत्नी के पिता, 'शहीद अवतार सिंह औलख' को खोया है। दूसरे किस्म के आतंकवादी प्रोफेशनल्स हैं, यानी आतंकवाद इन का प्रोफेशन है, जैसा की पेशावर में देखा गया। बस आप फीस दी जिए और फिर जहां मर्ज़ी, यहाँ तक की इन प्रोफेशनल्स के अपने घर में ही इन से धमाका या कत्लेआम करवा लीजिये .
यानी आज माहौल ये है की आतंकवाद एक बार फिर अक्रॉस दी ग्लोब संगठित हो रहा हैं। नतीजा एक खतरनाक माहौल जहाँ ये लोग अपनी अशांति फैलाने की कमज़र्फ ताक़त से किसी भी शांत गाँव, शहर या देश को आतंकित कर सकते हैं। आज जब ये खतरनाक तंजीमें आपस में संगठित हो रहीं हैं तो ऐसे में इजराइल भारत और अमेरिका भी इन तंजीमों के खिलाफ एक मजबूत तिकड़ी बन कर उभरें, तो इस में अस्वभाविक क्या है। इस ही सोच के चलते ओबामा भारत दौरे पर आये हैं।
यानी आज माहौल ये है की आतंकवाद एक बार फिर अक्रॉस दी ग्लोब संगठित हो रहा हैं। नतीजा एक खतरनाक माहौल जहाँ ये लोग अपनी अशांति फैलाने की कमज़र्फ ताक़त से किसी भी शांत गाँव, शहर या देश को आतंकित कर सकते हैं। आज जब ये खतरनाक तंजीमें आपस में संगठित हो रहीं हैं तो ऐसे में इजराइल भारत और अमेरिका भी इन तंजीमों के खिलाफ एक मजबूत तिकड़ी बन कर उभरें, तो इस में अस्वभाविक क्या है। इस ही सोच के चलते ओबामा भारत दौरे पर आये हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति, अगर कहीं भी जाएँ, तो उन की सुरक्षा के लिए, उन के ख़ास रक्षा एक्सपर्ट्स साथ रहते हैं। हमारे देश के उच्तम नायकों को भी ये सहूलत मुहैया करवाई जा रही हैI अब तो पेशावर जैसी जगह पे भी, अगर बच्चों को स्कूल जाना हो, तो साथ में सुरक्षा कर्मी चलते हैं। यह स्थिति पैदा किस ने की? सिर फिरे जिहादियों ने। उन्ही लोगों ने, जिन्हों ने पेशावर में, सैंकड़ों मासूमों को मौत के घाट उतारा और बच्चों के सर कलम किये। इस ही माहौल के चलते, अमेरिका के सुरक्षा कर्मी, केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति जहां भी जाएँ, उन के साथ ही रहते हैं।
जहां तक भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसीज की बात है , हमारी ख़ुफ़िया एजेंसीज देश विदेश की बहुत सी एजेंसीज के साथ मिल कर, एक नहीं सैंकड़ो बार काम करती रही हैं। बिना कोर्डिनेशन के कुछ भी संभव नहीं। यदि अमेरिकी सुरक्षा विशेषज्ञ भारत में हमारी एजेंसीज के साथ मिल कर अपने राष्ट्रपति की सुरक्षा करती हैं तो ये हमारे लिए गर्व की बात भी है और कुछ नया सीखने का मौका भी।
जहां तक नरेंद्र मोदी का एयरपोर्ट पर ओबामा का स्वागत करने का प्रश्न है तो आप और हम कौन होते हैं उन्हें प्रोटोकॉल का पाठ पढ़ाने वाले। देश में एक से बढ़ कर एक विशेषगय हैं जो इस विषय के माहीर हैं, और फिर वैसे भी जिस ऊंचाई पे नमो हैं , वो जो भी करें प्रोटोकॉल बन जाता है। नमो जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है मियां।
भारत के प्रधान मंत्री यदि अपने आमंत्रित मेहमान को लेने हवाई-अड्डे तक जाते है तो यह उन की महानता का प्रतीक है। अतिथि देवो भवा , यही तो है हमारी परंपरा। आप का कोई मित्र या रिश्तेदार अमेरिका या कहीं दूर से आये तो क्या आप उन्हें लेने या उन का स्वागत करने एयरपोर्ट नहीं जाते ? ओबामा भारत के मित्र हैं , मोदी के भी मित्र हैं, अगर वो उन्हें लेने एयरपोर्ट तक चले गए तो इस में बुरा ही क्या है ?
भारत के प्रधान मंत्री यदि अपने आमंत्रित मेहमान को लेने हवाई-अड्डे तक जाते है तो यह उन की महानता का प्रतीक है। अतिथि देवो भवा , यही तो है हमारी परंपरा। आप का कोई मित्र या रिश्तेदार अमेरिका या कहीं दूर से आये तो क्या आप उन्हें लेने या उन का स्वागत करने एयरपोर्ट नहीं जाते ? ओबामा भारत के मित्र हैं , मोदी के भी मित्र हैं, अगर वो उन्हें लेने एयरपोर्ट तक चले गए तो इस में बुरा ही क्या है ?
खैर बाकि अगर ख़म या नुक्स निकालने की आदत ही हो या फिर, किसी रेडिक्ल संगठन से प्रेरित हो कर कोई हर बात की आलोचना ही करना चाहे, तो उस का इलाज तो लुक़्मान हक़ीम के पास भी नहीं है। सईद शाहीद भाई साहिब , दाग तो चाँद में भी हैं लेकिन यकीन रखने वाले उस ही चाँद को देख कर रोज़ा खोलते हैं और ईद बनाते हैं, जब कि केवल दाग देखने वाले, दाग ही देखते रह जाते हैं। सब बात नज़रिये की है।
ओबामा यहां आये, उन की आव भगत और इज़्ज़त अफ़ज़ाई हमारा फ़र्ज़ है। उन की सेक्युरिटी का ठेका उन के सैनिकों के पास रहे , यही बेहतर है। हम अकबर और बीरबल के ज़माने से काफी आगे आ चुके हैं.
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