क्या चाहिए आप को, स्वराज का नारा या अच्छी सरकार ?


        
                       कुछ दोस्तों का कहना है कि  ," किरण बेदी कहा करती थी कि वे पार्टियाँ जनता के वोट की हकदार नही है,जो अपने फंडिंग को RTI के दायरे में नही लाना चाहती  भाजपा अपने फंडिंग को RTI के दायरे में लाने के पक्ष में नही है लेकिन किरण बेदी आज भाजपा के साथ है यह अवसरवादिता नही तो औरक्या है ??
                                       
मेरा जबाब .................... ," दोस्तों हमें ये समझ लेना चाहिए कि दवंध तो अब हो गा ही। अरविन्द भाई से लोग इस लिए खफा हैं कि  बनाने वालों ने तो दिन रात एक कर दी थीं, आप की झोंपड़िया बनाने में। एक एक तिनका जोड़ कर बनायीं थी, जितनी भी सीटें जुटाईं थी दिल्ली में, जनाब फूंक कर चल दिए वाराणसी। 

                       अब किरण से इतनी चिड़ क्यों ? क्या आज के परिपेक्ष में वो दिल्ली को केजरी से अच्छी सरकार दे पाये गी ? एक मौका इस महिला पुलिस अफ़सतर की भी देना चाहिए। कम से कम जंगे मैदान में डटी तो रहे गी।  

                      और फिर डर कैसा !  यदि सत्ता का नशा सर चढ़ के बोले गा, यदि भाजपाई ऐसा कुछ करें गे जिस से दबंगई चमके तो उन की वही दबंगई तो उन के कफ़न का सामान बने गी, वहीँ से तो उठे गी क्रांति की चिंगारी। चलने दो अभी अल्लाह मियां की चक्की, देखें कौन कितनी देर टिकता है इस में।

                                      फिल हाल एक मौका किरण को देना ही चाहिए। केजरी इतने भी दुलारे नहीं हैं की दो दो खिलोने तोड़ने पर भी तीसरी बार दिल्ली उन्हीं को दी जाये। पहले तो अछि खासी सीटें मिली, फिर चलिए जैसे भी हुआ, सी एम की कुर्सी भी मिली। जनाब का माथा ही घूम गया , बस चल दिए पी एम की कुर्सी के जंग में शामिल होने।

                   अब उन्हे आराम की सख्त जरूरत है. पांच साल और विरोध की राजनीती करें तो शायद कुछ बात बने।.............. अब तो अगर वो सी-एम बन भी गए तो दिल्ली के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाये गे सिवाए केंद्रीय सरकार से छत्तीस का आंकड़ा निभाने के I नुक्सान किस का हो गा ? दिल्ली वालों का।
बाकि, मर्ज़ी आप की,  आप जिसे चाहें वोट दें और हाँ अभी चुनाव ज़रा दूर है, तब तक देखें कौन क्या रंग दिखाता है और इस बार की चुनावी हवा को किस और लेजाता है।  


कवि बलवंत गुरने

...

No comments:

Post a Comment