आता है तो आ रोज़ न आवाज़ मैं दूँ गा। …A Common Man's call to Justice Markandey Katju.

The other day honourable Justice Markandey Katju posted Allama Iqbal's sher 
on facebook. ......

 Jiski na taab la sakey parwaaz-e-Jibreel
Ai Rabb-e-Zuljalaal woh raftaar de mujhe
Merey labon ko hoor-o-malaik bhi choom lein
Andaaz-e- guftagoo mein guftaar de mujhe.
 I am a great fan of Dr. Iqbal and also follow his lordship's  posts with a lot of interest and agree with many of his views but I strongly feel such great opinion leaders, if they are  to bring about the change they advocate and desire to bring in society must step out of their comfort zones and do a bit of foot soldiering in the big bad world of politics. This poem of mine is a natural reaction to Justice Markandey;s posts on FB and other blogs.
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बातें तेरी सुनी , हसीं बातें   तो हैं मगर ,
कुछ फैसलों सी हैं तो कुछ नसीहतों सी  हैं ,
तजुर्बों से भरा बैग लिए घूमता  है तू,
बातों में हुनर भी है शर्फे शायरी भी है,
लेकिन ज़हीन बन्दे  आम बन्दों की बातें ,
करनी तो हैं आसान, हैं  निभानी बड़ी मुश्किल,
हाथों  में कलम और जुबां पर बड़ी बातें ,
इन के इलावा चाहिए हिम्मत से भरा दिल,
दरबार में सुने हैं सुनाये हैं फैसले ,
रस्ते की  गर्द क्या है कभी ये भी आ के देख,
देखें हैं मैंने बहुत  से ऐसे भी गुबारे ,
उड़ते  बहुत हैं सह न सकें इक जो लगे मेख,

क्यों रब्ब से मांगता है तू गुफ़्तार का हुनर,
क्यों हूरों मलक के लबों के बोसे चाहे तू ,
क्यों बात करता है तू ज़ुल्मो-ज़ोरो-जब्र की ,
जब  ज़ोरोजबर ही से तो  रिश्ते निबाहे तू,
मैं रोज़ कत्ल होता हूँ ज़ालिम  की तेग से,
 तू  है के रोज़ देता है नयी एक  नसीहत,
दिल्ली की ऊंची गलियों का तू रहने वाला है ,
मैं सहता हु खेतों में नयी रोज़ मुसीबत 
वकीलों की नित नयी जिरह को सुनने वाले दोस्त,
मक़्तल में आ मकतूल का पैगाम तो सुन ले ,
क़ातील का तो एलान है छोड़े गा  न मुझे ,
कया दिलजलों ने कर दिया एलान तो सुन ले,
मसनद को छोड़ कर कभी गलियों में आ निकल ,
रफ़्तार भी दूँ गा तुझे परवाज़ भी दूँ गा ,
गुदड़ी में लाल 'गुरने' मैं  पिन्हाँ फ़क़ीर हूँ,
आता है तो आ रोज़ न आवाज़ मैं दूँ गा। 
आना नहीं अगर तो नसीहत भी छोड़ दे ,
ये नकली सा एहसास का रिश्ता भी तोड़ दे। 

आदर सहित 
…कवि बलवंत गुरने ...
aka Guru Gurunay
जय हिन्द। । वन्दे मातरम। 


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