Indian soldier and Indian Politician A Comparison.

Jai Jawan Jai Kissan and this is my Vigyan.... 
फौजीजवान को हर साल दो महीने की छुटि मिलती है और दस महीने वो बॉर्डर पर या अपनी पोस्टिंग की पोस्ट पर ड्यूटी करता है फौजी अपने कार्य का तक़रीबन 60 % हिस्सा एक्शन जोन में  बिताता है जहाँ हर रोज़ हर वक़्त ड्यूटी के दौरान 90 % मृत्यु का अंदेशा रहता है। इस तरहं 20 साल की सख्त ड्यूटी करने के बाद उसे पेंशन पाने का अधिकार मिलता है।  हर सांसद और विधायक, चाहे वो किसी गंभीर जुर्म का आरोपी ही क्यों न हो, 5 साल के  बाद सारी उम्र पेंशन पाने का फायदा उठाता  है।
                                      
                                         फौजी अपने 20 साल की नौकरी में न जाने  कितनी बार अपनी जान पर  खेल कर देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करता है और  राजनीतिज्ञ 5  साल  में ही न जाने कितनी बार , गैरजिम्मेदाराना बयानों से,  रिश्वतखोरी से , जरायमपेशाओं की पैरवी से और दर्जनों और गैरकानूनी  गतिविधियों से  देश की इज़्ज़त , कानून और सिस्टम से खिलवाड़ करता है।  असली पेंशन का हक़ दार कौन हुआ ? क्या फौजी को भी 5  साल के बाद पेंशन नहीं मिलनी चाहिए ? क्या नेतागीरी कर के देश का खून चूसने वाली इन जोंकों को केवल 5  साल बाद पेंशन मिलनी  चाहिए ? 
                                            
                                     यहां एक बार फिर इस बात को हाईलाइट करता चलूँ कि फौजी अपने कार्य का तक़रीबन 60 % हिस्सा यानी 15 से  20 साल एक्शन जोन में  व्यतीत करता  है जहाँ हर रोज़ हर वक़्त  ड्यूटी के दौरान मृत्यु का अंदेशा 90 % रहता है। यानि फौजी को पेंशन पाने  के लिए कम से कम 20 साल हार्ड ड्यूटी और विधायक या सांसद  को पेंशन पाने लिए सिर्फ 5 साल ऐशो आराम की ड्यूटी वो भी किसी फील्ड  एरिया में नहीं बल्कि देश अथवा प्रदेश की राजधानियों में ! 
                   
                                             मेरे और मेरे मित्रों के विचार में हर सांसद या विधायक को  पांच साल में कम से कम 5  महीने के लिए जम्मू कश्मीर या बाकि action zones में रहना अनिवार्य होना चाहिए ( and not as a bloody VIP  but with the soldiers in actual action zone, participating in patrols and search ops and all other hard duties that a patriotic dutiful soldier does without questioning the orders.) ....... सब बाहुबलियों की पतलून ढीली ही नहीं  बल्कि पहले ही दिन गीली हो जाए गी। ये मेरा दावा है। 
                                
                            सैनिक शहीद हो रहे हैं पर भारत के भाग्यविधाता,  भारत  के सांसद कर दाता के करोड़ों रुपये खर्च कर के  कोई कानून संशोधित  या बिल पारित करने की जगह निरर्थक बहस कर रहे हैं।  देश की आदरणीय विदेश मंत्री शोर शराबे के बीच में  केवल कारवाई पूरी करने के लिए अपना व्यक्तव्य पढ़े जा रहीं  है तथा स्पीकर साहिब शोर शराबे को देख कर कभी  मंद मंद मुस्कराहट  बिखराते हैं तो कभी मंत्री जी को हाथ से कार्यवाही करते रहने के लिए कहते हैं और  विरोधी दल हैं की नारे पे नारे मार रहे हैं , ये सब लाइव टेलीविज़न पर देख कर हम जैसे लोग हंस भी रहे हैं और अपनी किस्मत को भी कोस रहे हैं, कि ये हैं वो नुमाइंदे जिन्हें इस देश की भोली भाली  जन्ता ने चुन कर प्रजातंत्र के मंदिर में अपने हक़ की रक्षा के लिए भेजा  है.
                          
                          ......  रूलिंग पार्टी तो इस बहस  में लगी है की रामजादा कौन है और .. haramjada कौन है, प्रधान मंत्री जी अपना फ़र्ज़ यह कह कर निभा रहे हैं कि भाई  हमारी MP थोड़ी सादादिल और गंवार किस्म की हैं , उन्हें माफ़ कर दो " , ओप्पोज़ीशन को पार्लिमेंट के वेळ /well   में  शोर मचाने का मौका मिल गया है  और पार्लिमेंट का काम इन की बला से भाड़ में जाये।  ऐसा व्यवहार मैंने स्कूल के बच्चों  में भी नहीं  देखा , यदि मेरे मास्टर जी ज़िंदा होते तो यक़ीनन इन सभी के पिछवाड़े सेक देते वर्ना किसी मुझ जैसो को ये काम अवश्य सौंप देते ।

                                      आदरणीय नरेंदर भाई से हम तुच्छ नागरीकों का बस इतना ही सविनय निवेदन है की अगर ऐसे ही 280 कमल के फूल लाने थे तो इस से बेहतर तो कागज़ के फूल ही ले आते जनाब  ……………  भाई जान गांधी जी और आम आदमी के झाड़ू को तो आप ने उठा लिया और appropriation of symbols भी कर दिखाया लेकिन क्या इस झाड़ू से देश की असली गन्दगी साफ़ करने का कोई इरादा भी है या सब दिखावे का पोस्टर ही है ? 
          
                                  इन गैरजिम्मेदार निखटुओं  को कम से कम 5  दिन के लिए तो कश्मीर के संकरों और बंकरों में साथ की साथ भेज देना चाहिए,  हाँ फ़ौज की कुछ वर्दियां तो ये  गीली और पीली कर  दें गे  लेकिन शायद कुछ अक़्ल ठिकाने आये I Politicians with every trait and conduct of theirs are proving that they are the lowliest traitors of Mother India. 

                  वादों, नारों और  दावों के सिवा इन राजनेताओं के पास  कुछ नहीं है। किसी के पास गरीबी हटाओ का नारा है तो किसी के पास इंडिया शाइनिंग का नारा है, कोई करप्शन हटाने के दावे करता है तो कोई सम्पूर्ण विकास के दावे, लेकिन जैसे ही सत्ता का  खरगोश इन सत्ता  लोभी बिल्लों के पास आ जाता है, ये सभी सत्ता भोग का पूर्ण लुत्फ़ उठाने में जुट जाते हैं , फिर पार्टी चाहे किसी आम आदमी के नाम वाली हो  हो या ख़ास आदमी के नाम वाली । 
                   
          भारत माता की लाज को कायम रखने का केवल एक ही  विकल्प है.………  ' व्यवस्था परिवर्तन' . 
... जय हिन्द  ... वन्देमातरम ...
कवि बलवंत गुरने ...

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