Religion is your personal Matter..... Keep it Personal.

                             
{सभी भारतीओं  के लिए और ख़ास तौर  पर भटके हुए भारतियों के नाम}
 [न समझो गे तो मिट जाओ गे ऐ हिंदोस्तां वालो ] जागो इंडिया - 
 
                                       मेरे बहुत से मुस्लिम फेसबुक फ्रेंड्स किसी भी प्रकार की हिंसा की  निंदा करते रहें हैं और उन्हों ने  पेशावर बालसंहार की भी निंदा की।  लेकिन हमारे कुछ  गुमराह मुस्लिम देशवासियों,  तथा मुस्लिम वर्ग के गुमराह  लीडरों ने,  अपना ज़ुबानी फ़र्ज़ तक भी ना  निभाया।  यह फ़र्ज़  निभाने से ये पहले भी कई बार चूके।  जब कश्मीर या और कई जगह पर आतंकी हमले होते रहे तो चुप रहे लेकिन 9/11 या 26/11 पर पटाखे चलना न भूले ।  इन नेताओं को अपने गिरेबान में झाँक कर देखने की ख़ास जरूरत है। क्या ये सच में क़ौम के रहबर हैं या क़ौम और देश दोनों के गद्दार।

                                     यहां ये कहना आवश्यक है, कि मैं संविधान में दिए गए,  किसी भी मज़हब को मानने,  या फिर किसी भी धर्म को न मानने के प्रवधान का,  अनथक समर्थक हूँ।  किसी भी प्रकार की 'घर वर वापसी' के खिलाफ हूँ। कोई हिन्दू है या मुस्लिम, सिख है ता ईसाई, ये उस का निजी  मामला है। अब क्यों की ये निजी मामला है,  तो किसी को भी,  किसी का धर्म जबरन डरा धमका कर या पैसे का लालच दे कर बदलना गैरकानूनी है।
                           
                                     यदि हम इतना मान कर चलें, कि  जो मैंने कहा वह  ठीक है,  तो ये भी मानना  हो गा,  की अपनी धर्मिक भावनाओं का पब्लिक प्रदर्शन , चाहे वो किसी त्यौहार से प्रेरित हों या किसी रोष से प्रेरित , न सिर्फ गलत है बल्कि गैर कानूनी भी।  भाई तू  किस की पूजा करता है , करता भी है या नहीं,  इस से किसी और को क्या लेना देना।  मैं  किस की पूजा करता हूँ , करता भी हूँ या नहीं,  इस से किसी और  का  क्या लेना देना।

                                  क्यों की संविधान के अनुसार धर्म,  हर नागरिक  का निजी मामला है,  तो ये भी मानना पड़े गा,  कि इसे निजी रखना ही समझदारी है।  अब धार्मिक महोतस्वों पर लम्बे लम्बे जलूस निकाल कर,  शहर की सड़कें रोक देना, या किसी धर्मिक आक्रोश को प्रगट  करने के लिए, जनसंपदा  को तोड़ फोड़ अथवा जला देना, ये सब समाज विरोधी और देश विरोधी पागलपन  नहीं तो और क्या है ?

                                 जब  ये पागलपन उन्माद का रूप ले लेता है  तो पेशावर स्कूल जैसे दुखद हादसों  के रूप में सामने आता है। इस पागलपन से ग्रसित लोगों को,  देश से ऊपर अपना धर्म लगता है।  ऐसा इस लिए है  क्यों की राष्ट्रिय उत्सव, जैसे की 26 जनवरी या 15 अगस्त तो हम सरकारी कार्यक्रम  की तरहं,  साल में दो बार ही मनाते हैं,  जब की धार्मिक उत्स्व तो हर दूसरे दिन कोई न कोई होता ही है।

                           
                                  ये  बात मैं किसी धर्म विशेष के लिए नहीं कह रहा।  सभी भारतीओं धर्मों के त्योहारों को एक उन्मादित जोश के साथ बनाया जाता है। ऐसा इस लिए  है,  क्यों की धर्म और राजनीती में एक गैरकानूनी सम्बन्ध है।   यह सम्बन्ध 1857 के बाद अंग्रेज़ों ने स्थापित किया और खूब बढ़ाया भी।  ये उन की जरूरत और मजबूरी दोनों थी।

                               उस अति अल्पसंख्यक शाशक ने,  इतनी बड़ी आबादी वाले भारत पर,  इस ही स्ट्रेटेजी के जरिये राज किया। उन की बांटो और राज करो की पालिसी के  चलते,  उन्हों ने सभी भारतीओं को,  न सिर्फ धर्म के नाम पर बाँट दिया बल्कि,  'I am better than You'  की होड़ भी पैदा की।  दुर्भाग्य ये है,  कि भारत की आज़ादी के बाद भी,  भारत के राजनेता इस पालिसी का,  दबा कर इस्तेमाल करते रहे हैं,  और आज भी कर रहे हैं।

                                 इस सब के चलते,  आज माहौल ये है कि,  कोई भी भारतीय,  भारतीय होने से पहले,  और  भारतीय होने से कहीं ज्यादा,  एक हिन्दू, सिख या मुसलमान है।  इस ही भावना के रहते, जब बर्मा में,   बलात्कार करते  पकडे गये तीन  मुसलमान युवकों को,  वहां की आक्रोशित जन्ता ने दबा कर पीटा, तो  भारत के गुमराह मुसलमान, भारत ही  में तोड़फोड़ करने लगे।  अपना आक्रोश इन  गुमराह मुस्लिम देशवासिओं ने,  मुम्बई में शहीद स्मारक  पर  लातें मार कर जताया, क्या ये पागलपन की  हद्द नहीं ?

                               क्या बर्मा के मुसलमान,  इन देशवासियों को,  भारत के शहीदों से ज्यादा प्रिय  हैं ? क्या ये भूल गए,  कि जब ये भारतीय शहीदों के स्मारक पर लात मारते हैं,  तो देश  के उन सभी वीर सपूतों की तौहीन करते हैं,  जिन्हों ने समय समय पर,  इस देश के लिए अपने प्राणो का बलिदान दिया?  क्या ये नहीं जानते कि,  शहीदों में  हिन्दू, सिख, ईसाई,  मुस्लिम, बौद्ध, जैन, पारसी और बाकी  अनेक भारतीयों  वर्गों के लोग शामिल हैं ?  अगर ऐसा है तो इन्हे ये एहसास दिलाना मुस्लिम नेताओं का काम  है।

                           हैरानी  तो तब होती है जब, बोको हरम के हरामी, ढाई सौ स्कूली छात्राओं का अपहरण कर के, उन्हें एक एक कर खुले बाजार में बेचते हैं। तब  ये कोई आक्रोश नहीं जताते !  भारत सिडनी नैरोबी में हो रही आतंकी घटनाओं पर ये कोई आक्रोश नहीं जताते !  दुनिया भर में  शियाओं के ऊपर  ढाये जा रहे जुल्म पर ये कोई आक्रोश नहीं जताते!   जब पेशावर में सैंकड़ों मासूमों को, बेरहमी से क़त्ल कर दिया जाता है, तब ये एक कैंडल मार्च भी नहीं निकालते !  इस से साफ़ जाहिर है, कि  ये सब दंगा फसाद,  बिके हुए दलाल नेताओं के इशारे पर ही  होता है।  अब उन में कौन किस के हाथों बिके  है, कितने अलगाववादिओं के हाथ बिक चुके हैं, या कितने दंगा करवा कर,   अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने वालों  के हाथ बिके हैं, इस का खुलासा तो अपने आप में एक शोध का विषय है।

                             सिरफिरे आतंकी, (यकीं मानिये इन में से ज़्यादा तर पक्के ड्रग एडिक्ट और मानसिक रोगी हैं ) जब अबोध बच्चियों का कलेजा निकाल कर खाते हैं,  पत्रकारों के सर कलम करते हैं, या पेशावर आर्मी  स्कूल में घुस कर एक  महिला टीचर को  उस ही के स्टूडेंट्स के सामने ज़िंदा जला  देते हैं, और दर्जनों बच्चों के सर काट देते हैं, तब मेरे ये देश वासी आक्रोशित क्यों नहीं होते। ये  शातिराना चुप्पी क्यों।

                                   शहीद भगत सिंह जानते थे, कि  आने वाले दिनों में,  धर्म  के नाम पर  होने वाली हिंसा ही,  इंसानियत का,  और ख़ास तौर पर  हिंद-पाक के ख़ित्ते का,  सब से बड़ा नुक्सान करे गी।  वो जानते थे  कि शातिर राजनेता,  वो चाहे हिन्दू नेता हों, सिख नेता  हों अथवा  मुसलमान नेता हों,  धर्म को  सियासत का हथियार बना कर, लोगों को आपस में लड़वाएं गे,  और,  सत्ता पर काबिज़ हों गे।  भगत सिंह सिर्फ अंग्रेजी सरकार के बागी थे , कोई सिरफिरे बागी नहीं।  उन का एक एक एक लेख, सौ सौ ग्रंथों के बराबर  है। उन्हों ने  स्वाध्याय द्वारा, उच्च ज्ञान की प्राप्ति की, तथा  अपने आप में एक सूझवान, संवेदनशील, दृढसंकल्प और जुझारू व्यक्त्तिव का निर्माण  किया ।
             
                                   इतहास गवाह है कि,  फांसी  से पहले,  उन्हें भगवान पे आस्था लाने के लिए कहा गया लेकिन,  उन्हों ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया।  ऐसा नहीं, कि वो भगवान से दूर थे, बल्कि ऐसा इस लिए की वो जानते थे कि,  भगवान के इर्द गिर्द,  लोगों द्वारा  बनाया गया कोई भी  धर्म, राजनेताओं के हाथ में,   इंसान की  इंसानियत से खिलवाड़ करने का औजार मात्र बन कर रह जाता है।

                                  बंद करो ये सब धर्म वर्म का नाटक। आप हिन्दू हैं , सिख हैं ,  मुसलमान हैं , ईसाई हैं  या कोई भी हैं,  यदि धरम को सियासत का हथिआर  बना कर,  जन्ता  पे ज़ुल्म और देश को बर्बाद करो गे,  तो खुद भी बर्बाद हो जाओ गे।   यहां पे  यह  भी कहना हो गा कि,  देश की अकलियतों को,  मिनिओरिटी होने की छाती पीट कर,  देश विरोधी किसी भी कार्रवाई को करने का कोई हक़ नहीं है।

                                    अकलियतों के अलगावपसन्द आतंकिओं द्वारा किये गए बंबधमाकों , बसों ट्रेनों से निकाल निकाल कर मारे गए मासूमों  के प्रतिशोध में अगर दंगे फसाद होते हैं तो उस के लिए ज़िमेदारी सिर्फ अक्सरियत पर डालना बेवकूफी हो गी। ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती।
           
                                   यदि भारतीय कहला कर, भारत में रह कर, भारत की रोटी खा कर, भारत से ही  दुशमनी  निभानी है तो आप पर लानत है। आप के इस रवय्ये से, यह भी सिद्ध होता है की आप अवल दर्जे के बेवकूफ हैं।  इस की एक उदहारण वो जनाब है जो बंगलोर में रहते हुए, वहां की IT कंपनी की तनख्वाह पीटते हुए ISIS के लिए काम कर रहे थे।  आप जैसे लोग न सिर्फ सारी  मिनिओरिटी कम्युनिटी को बदनाम करते हैं बल्कि मेजोरिटी कम्युनिटी के आतंकिओं को दंगे फसाद करने का और आप पर देशद्रोही होने का इलज़ाम लगाने का मौका भी देते हैं।

                                  हाँ यहां अखसरीअत से भी कहता चलूँ।  आप के बाहुबली, अगर अकलियतों को,  हर छोटी बड़ी बात पर,  प्रताड़ित करें गे,  तो हंगामा बढ़ तो सकता है, पर  घटे गा नहीं और उस से नुक्सान भारत का ही हो गा । दुःख तब होता है,  जब अकसरियत के भीमकाय नेता भी,  धर्म की दुहाई दे कर सरकार बनाने पर तुले हों।  ये काठ की  हंडिया  है बाबू , एक बार चढ़ गयी सो चढ़ गयी , बार बार चढ़ाओ गे  तो हाँडिया  भी जल जाये  गी, दाल भी  हाथ न आये गी और हाथ भी जल जाएं गे।

                              जो लोग भारत की रोटी खा कर,   भारत के शहीद  स्मारकों पे लात मारते हैं , भारत  के किसी और देश द्वारा हॉकी या क्रिकेट मैच हारने पर पटाखे चलाते हैं, कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताते  हैं, अपने आप को भारतीय कम और हिन्दू,  मुसलमान या सिख ज्यादा मानते है,---- उन्हें मेरी एक ही सलाह है     'Religion is your personal Matter..... Keep it Personal' ..... and if you think this is difficult to understand, then understand this......  ' LOVE INDIA'   or  'LEAVE INDIA'.

                                     देश भगतों से अपील है की आने वाली नस्लों को,  धर्मिक कटटरपंथी से दूर रखो और चैनो- अमन की राह दिखाओ।  उन्हें गुरुद्वारों, मंदिरों, और मस्जिदों में भेजने की जगह व्ययामशालाओं , अखाड़ों, संगीतालयों और पुस्तकालयों में जाने के लये ज्यादा प्रतोसाहित करो।  फुटबॉल, बालीबाल या कब्बडी खेलना,  तोते की तरहं  धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने से,  व्यक्तित्व विकास के लिए  कहीं ज्यादा अच्छा  है।  देश की सारी सम्पदा  हम सब की सांझी है, यदि कोई भी व्यक्ति पब्लिक प्रॉपर्टी को नुक्सान पहुंचाता दिखे, जैसे की आगज़नी तोड़फोड़ इत्यादि, तो न सिर्फ उस की शिकायत करो,  बल्कि उस की मरम्मत  भी करो।
                                                                    जय हिन्द वन्दे मातरम  
                                                                   Poet Balwant Gurunay.

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