देश वासिओं को कसाब तो याद है लेकिन करकरे नहीं.............क्रिकेटर ह्यूम को जानते है लेकिन मेजर उनीकृष्णन और अशोक कामते को नहीं। इस राष्ट्रिय गिरावट के सीधे सीधे दो कारण हैं.
1. मीडिया कसाब को मेजर उनीकृष्णन और हेमंत करकरे से ज़्यादा दिखाए गा तो वोही लोगों को याद रहे गा। क्रिकेटर ह्यूम की मौत का सभी को दुःख है लेकिन जितनी स्पेस उस की मृत्यु पे रोने वालों को मीडिया देता है उतनी स्पेस यदि शहीदों को भी दे तो लोग उन्हें भी जानने लगें गे। मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि आज के युग में जन शिक्षा व समाजिक मानदंडों का बड़ा संस्थापक भी बन चुका है। लाखों करोड़ो लोगों के लिए मीडीआ ही स्कूल कॉलेज का काम भी करता है , यानि लाखों लोग वो ही जानते हैं जो मीडिया उन तक पहुंचाता है। तो इस राष्ट्रिय गिरावट का एक तो कारण है 'Failure of Media".
2. दूसरा है 'Failure of political leadership ". देश ऐसे राजनीतिक स्यारों से भरा पड़ा है अपनी राजनीतिक रोटीयां सेकने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है। यानि किसी भी साधु संत, गुरु, नेता अभिनेता की लाश को कब्रों में से खोद खोद कर, उन को फिर ज़िंदा कर के ये लोग उन की बरसियां और जनम दिनों पर अखबारों में लाखों रुपयों के विज्ञापनों में इन धर्मगुरुओं की फोटो के साथ अपनी फोटो छपवा कर निजी पब्लिसिटी हासिल करते हैं। इन लोगों के लिए मेजर ऊनि तो बस ड्यूटी कर रहे थे। बरसी क्यों बनाई जाये। हमारे देश में मोदी जी भी आज कल झाड़ू उठा कर चल दिए हैं देश की सफाई करने लेकिन दागियों की सफाई कौन करे गा ? ये एक चिंता का विषय है। सफाई या तो कोई उच्च स्तर पे बैठा मोदी जैसा लीडर कर सकता है या आने वाली नस्ल इस राजनीतिक गन्दगी को साफ़ करने का सफाई अभियान चलाये गी और वो किसी झाड़ू द्वारा नहीं बल्कि बंदूख की नाली से इस सफाई अभियान को अपनी मंज़िल तक पहुंचाए गी।
गुरु गुरने का एक ही नारा है,
'देश भगतो '
गुरु गुरने का एक ही नारा है,
'देश भगतो '
बेईमानो को ठोको गुरु भारत पतन को रोको गुरु '
वन्दे मातरम ....
.... कवि बलवंत गुरूने ....
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