©लेनिन की बुत्त तुड़ाई, दिशा परिवर्तन या केवल सत्ता की लड़ाई ? @ ✒GBG⚔
1. आज कल एक सवाल गरम है, जो त्रिपुरा में भाजपा की जीत के बाद वायरल हो रहा है, और वह है, लेनिन के बुत्त का तोड़ा जाना।
2. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा ऐसा क्या दे दे गी त्रिपुरा को जो कामरेड न दे सके ? मेरा संक्षिप्त सा जबाब है, बाबा जी का ठुल्लु। राजनीती और चुनाव जीतने की प्रक्रिया में अवश्य ही भाजपा आज आगे है, कॉंग्रेस और वामपंथी बहुत ज्यादा पिछड़ गए, लेकिन इस का यह मतलब बिलकुल नहीं की BJP का हर चाटुकार चमचा, किसी भी किस्म के आदर या मुबारकबाद का हक़्क़दार है।
3. सच्च केवल इतना है की यह कोई भी जीत अब कमल की जीत नहीं, बल्कि विपक्ष की हार है। तो जो कार्यकर्ता नस्ल के लोग, अब तक, हाथ पंजा, साईकल, लालटेन, या लाल निशान उठाये घूमते थे, वही लोग तो हैं, जो आज कमल उठाए घुमते हैं।
4. अब आप कहें गे, वह क्यों और कैसे?
5. वह इस लिये की राजनीती करने वाले या इस चाल पे चलने वाले ज्यादातर लोग, चढ़ते सूरज को सलाम करने और बहती गंगा में हाथ धोने के आदी, मौका परस्त लोग ही हुआ करते हैं, और ज्यादातर राजनैतिक कार्यकर्ता नसल से ही, यानी डीएनए से ही कुत्ते हुआ करते हैं। इन्हें जिस दरवाज़े पे बाँध दो, उस के लिए ही भौंकने लगते हैं।
6. यानी के, आज भाजपा के लिये भौंकने वाले कुकृक्तु, कल तक पंजाब हरयाणा, दिल्ली, और न जाने कहाँ कहाँ, कांग्रस के लिए, और त्रिपुरा में लेनिनवादियों के लिये भौंकते थे, और आज वही लोग जो लेनिन के बुत्त-परस्त थे, लेनिन के बुत्त-कश हो गए हैं।
7. सत्ता में परिवर्तन आती जाती बात है। मोदी और माणिक सरकार के दरबार का सच्च यही है, लेकिन गुरु गुरुने की दुनिया का यह सच्च नहीं। सत्य पन्थियों के लिए यह सब बेमानी है, बेमतलब है।
8. हम उस शहीद के क़िरदार के आशिक़ हैं, जो 23 साल की उम्र में यमराज से रस्सा कशी कर गया, लेकिन भगवान के साहमने तक, गिड़गिड़ाया नहीं।
9. सो इस के चलते, शेरों और सिंघों के पास, कुत्तों के लिए समय ही कहाँ है ? कुत्ते चाहे बाएं दरवाज़े पे भौंकते हों, या फिर दाँये दरवाज़े पे, हम जानते हैं की यह हड्डियों और शाही टुकड़ों के आशिक़, सत्ता के मांस की बू पे चलते हैं, असूलों पर नहीं, और फ़िर वह बू, लाल हरे या केसरी, किसी भी रंग के गोरनगर से क्यों ना आती हो।
10. यह भी कहना अनिवार्य है की सत्ता का इतना ज्यादा केंद्रित होना, अवश्य ही देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण साबित हो गा। सत्ता का जब इतना ज्यादा किसी दल या व्यक्ति में केंद्रीकरण होता है, तो पुन्ह विकेंद्रीकरण केवल सत्ता का ही नहीं, राष्ट्र का भी सम्भव होता है, क्यों की बिना छीना झपटी के सत्ता का परिवर्तन फ़िर सम्भव नहीँ, और ऐसी छीना झपटी में वस्त्र, देश और देश की जन्ता के ही फटते हैं।
🚩तत्त सत्त श्री अकाल🚩
© ✒गुरु बलवन्त गुरुने ⚔
1. आज कल एक सवाल गरम है, जो त्रिपुरा में भाजपा की जीत के बाद वायरल हो रहा है, और वह है, लेनिन के बुत्त का तोड़ा जाना।
2. कुछ लोग कहते हैं कि भाजपा ऐसा क्या दे दे गी त्रिपुरा को जो कामरेड न दे सके ? मेरा संक्षिप्त सा जबाब है, बाबा जी का ठुल्लु। राजनीती और चुनाव जीतने की प्रक्रिया में अवश्य ही भाजपा आज आगे है, कॉंग्रेस और वामपंथी बहुत ज्यादा पिछड़ गए, लेकिन इस का यह मतलब बिलकुल नहीं की BJP का हर चाटुकार चमचा, किसी भी किस्म के आदर या मुबारकबाद का हक़्क़दार है।
3. सच्च केवल इतना है की यह कोई भी जीत अब कमल की जीत नहीं, बल्कि विपक्ष की हार है। तो जो कार्यकर्ता नस्ल के लोग, अब तक, हाथ पंजा, साईकल, लालटेन, या लाल निशान उठाये घूमते थे, वही लोग तो हैं, जो आज कमल उठाए घुमते हैं।
4. अब आप कहें गे, वह क्यों और कैसे?
5. वह इस लिये की राजनीती करने वाले या इस चाल पे चलने वाले ज्यादातर लोग, चढ़ते सूरज को सलाम करने और बहती गंगा में हाथ धोने के आदी, मौका परस्त लोग ही हुआ करते हैं, और ज्यादातर राजनैतिक कार्यकर्ता नसल से ही, यानी डीएनए से ही कुत्ते हुआ करते हैं। इन्हें जिस दरवाज़े पे बाँध दो, उस के लिए ही भौंकने लगते हैं।
6. यानी के, आज भाजपा के लिये भौंकने वाले कुकृक्तु, कल तक पंजाब हरयाणा, दिल्ली, और न जाने कहाँ कहाँ, कांग्रस के लिए, और त्रिपुरा में लेनिनवादियों के लिये भौंकते थे, और आज वही लोग जो लेनिन के बुत्त-परस्त थे, लेनिन के बुत्त-कश हो गए हैं।
7. सत्ता में परिवर्तन आती जाती बात है। मोदी और माणिक सरकार के दरबार का सच्च यही है, लेकिन गुरु गुरुने की दुनिया का यह सच्च नहीं। सत्य पन्थियों के लिए यह सब बेमानी है, बेमतलब है।
8. हम उस शहीद के क़िरदार के आशिक़ हैं, जो 23 साल की उम्र में यमराज से रस्सा कशी कर गया, लेकिन भगवान के साहमने तक, गिड़गिड़ाया नहीं।
9. सो इस के चलते, शेरों और सिंघों के पास, कुत्तों के लिए समय ही कहाँ है ? कुत्ते चाहे बाएं दरवाज़े पे भौंकते हों, या फिर दाँये दरवाज़े पे, हम जानते हैं की यह हड्डियों और शाही टुकड़ों के आशिक़, सत्ता के मांस की बू पे चलते हैं, असूलों पर नहीं, और फ़िर वह बू, लाल हरे या केसरी, किसी भी रंग के गोरनगर से क्यों ना आती हो।
10. यह भी कहना अनिवार्य है की सत्ता का इतना ज्यादा केंद्रित होना, अवश्य ही देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण साबित हो गा। सत्ता का जब इतना ज्यादा किसी दल या व्यक्ति में केंद्रीकरण होता है, तो पुन्ह विकेंद्रीकरण केवल सत्ता का ही नहीं, राष्ट्र का भी सम्भव होता है, क्यों की बिना छीना झपटी के सत्ता का परिवर्तन फ़िर सम्भव नहीँ, और ऐसी छीना झपटी में वस्त्र, देश और देश की जन्ता के ही फटते हैं।
🚩तत्त सत्त श्री अकाल🚩
© ✒गुरु बलवन्त गुरुने ⚔
सत प्रतिशत सत्य वचन
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