सिस्टम में सुधार संशोधन अथवा बदलाव ................ … कवि बलवंत गुरने।


आप सब जानते है की मैं  वक़्त बा वक़्त भारतीय राजनीतिक सिस्टम में सुधार, संशोधन अथवा बदलाव का पक्षधर हूँ  या ये कहिये की  इस सिस्टम के खिलाफ हूँ।  मैं मित्रों के साथ कुछ तथ्य साँझा करना चाहता हूँ।  --- अभी हुए हरयाणा  के एलक्शन की ही उदहारण ली जिए।  हरयाणा  में  1.64 करोड़ वोटर्स है जिन में से 1.23 करोड़ मतदाताओं ने मतदान में  हिस्सा लिया,  यानि के 76.5 %  मत दान हुआ।  नतीजे कुछ इस प्रकार निकले :- चौटालों की  INLD जिसे प्रकाश सिंह बदल और सुखबीर के अकाली दल पार्टी की हिमायत हासिल थी 24.1 % वोट बटोरने में कामयाब रही।  एंटी इन्कम्बेंसी के बावजूद  हूडा की कांग्रेस ने 20.4% वोट  अपने बस्ते में डाल लिए। यहां यह कहना अनुचित न हो गा की यदि हूडा की     पूँछ  के साथ राहुल और सोनिया या मनमोहन का कंटर न बंधा होता  तो अपने और अपने काम के दम पे हूडा कम से कम 35 % वोट निकाल लेते।  सैनिक स्कूल कुंजपुरा का यह विद्यार्थी किसी भी तरहं किसी से कम  न था। अब  BJP की बात करें तो बावजूद  इस के की केंद्र में इस दल की सत्ता है, बावजूद  इस के की इतिहास में पहली बार किसी कार्यरत प्रधानमंत्री ने पार्टी समर्थन में खुल कर हिस्सा लिया और रैलियां इत्यादि तक की , बावजूद  इस के की रूलिंग पार्टी के खिलाफ 10  साल की एंटी इन्कम्बेंसी लहर थी,  BJP मात्र  33.2 % वोट ही बटोर पायी। . यानि ये हमारे सिस्टम का ही कमाल है की  मात्र 33 % जनमत 100 % लोगों पे राज कर रहा है।  बात यहाँ ख़त्म नहीं होती।  यहाँ से यह किस्सा एक बहुत ही बलदार मोड़ लेता है।  हरयाणा की राजनीती में एक ख़ास प्लेयर  है जिस का नाम है डेरा सच्चासौदा. { और ऐसे प्लेयर आप को भारत के कोने कोने की राजनीती में मिलें गे। }  हरयाणा में डेरे के लगभग 18 लाख अनुयाई हैं, जो  हरयाणा की कुल  वोटों  का लगभग  14.5 % हिस्सा बनता है।  डेरा प्रमुख राम रहीम ने आखरी मौके पे अपने अनुआइयों को   BJP के पक्ष में वोट डालने का हुकमनामा सुना दिया।  ऐसा इस लिए की यदि INLD की सरकार  आई तो अकाली डेरा वालों  के खिलाफ दबंगगिरी करवा सकते हैं क्यों की ऐसा पहले भी हो चुका  है। परिणाम ये निकला की इस का सीधा फायदा बीजेपी को पहुंचा।  यानि यदि डेरा किसी और दल का समर्थन करता तो BJP के वोट मात्र 18.7%  पे सिमट कर रह जाते  और यदि डेरा ने किसी एक पार्टी का समर्थन न भी किया होता तो भी बीजेपी को 33 % वोट कभी न मिलते और हरयाणा में कोई न कोई मिलीजुली सरकार ही बन पाती और वो कोलेशन किस की होती इस का अनुमानं लगाना अब तो व्यर्थ ही है।  यानि मुद्दे  की बात यह की सिस्टम में ऐसी खामियां है की 10 साल का सरकार का काम काज एक तरफ, एक पार्टी के पक्ष में व्यापक वेव एक तरफ, प्रधान मंत्री का अखाड़े में उतरना एक तरफ और एक पॉप बाबा  की अपील एक तरफ।  एक पॉप बाबा चाहे वो राम रहीम हो या राम देव इस सिस्टम  से खिलवाड़ कर सकता है क्यों की सिस्टम इस की इजाज़त देता है।    इस के इलावा बाहुबलियों  , नशा तस्करों, नशे और पैसे के सीधे वितरण से जिस प्रकार हिंदुस्तान की इलेक्शन को प्रभावित किया जाता है वो तो जग जाहिर है ही।   इस ही वास्ते मुझ जैसे लोग नमो जैसे नायक और बाकी जिम्मेवार लोगों से सिस्टम में बदलाव की गुहार लगाते रहते हैं.  अगर नमो सिस्टम में बदलाव ला कर प्रेस्डेन्शिअल सिस्टम की व्यवस्था करें तो देश को आगे आने वाले बहुत से अनर्थों से बचाया जा सकता है। इलेक्शन तो आज भी देश में वयक्तिवाद के नाम पर ही होते है तो फिर एक नायक के साथ मुल्क सैकड़ों खलनायकों की भीड़ का बोझ क्यों उठाये।  जनता के सामने किन्ही भी व्यक्तियों को अपना विज़न रखने दो , वो चाहे नमो हो,  अन्ना हो, ममता हो, सिद्धू हो, केजरी हो , किरण हो, या  मैं और आप हों .... जिसे भी जनता चुन ले उसे अपनी टीम चुनने की पूरी छूट  होनी चाहिए तां  की वो अगले 5 साल तक सुचारू रूप से देश का सञ्चालन और प्रगति कर सके।  अगर ऐसा न हुआ तो व्यवस्था परिवर्तन तो राजनीती शाश्त्र  का एक असूल है ही ।  समझदार लोग भूटान की तरहं व्यवस्था परिवर्तन ले आते हैं और नासमझों का हाल वोही होता है जो नेपाल के  रजवाड़ों का हुआ।  वक़्त अपना भविष्य चुनने का मौका सब को देता है और हम भारतीय किस्मत वाले हैं वाले हैं की अभी हम ने वो मौका पूरी तरहं खो नहीं दिया है।  …  कवि बलवंत गुरने।     

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