उभरते हुए युवा भारत में क्या है राजनीतिक सामर्थ्य का मापदंड ...............

जब तक दागी लोगों को ताक़त पाने का मौका दिया जाता रहे गा तब तक दागी होना ही नेता होने के लिए एक जरूरी मापदंड बना रहे गा I जैसे ही दागी और शोधागिरी तथा बदमाशी करने वाले लोगों की छंटनी शुरू हो जाये गी , पहला नतीजा तो ये हो गा की जिन्हो ने बदमाशी सिर्फ इस लिए चुनी है की वो इसे राजनीतिक सामर्थ्य का मापदंड समझने लगे हैं, अपनी हरकतों की दिशा बदल दें गे, दूसरा ठीक और प्रतिभवान लोग राजनीती की और आकर्षित हों गे । ये तो मनो विज्ञान का पहला असूल है। और फिर वैसे भी भाजपा, आप या कांग्रेस कोई देश की आखरी उम्मीद नहीं हैं। देश में काफी राजनीतिक दल लोकल लेवल पर मजबूत हैं और नयी पार्टिओं का गठन भी होता ही चला जा रहा है। जैसे जैसे लोगों को यह एहसास हो गा की भाजपा भी नयी बोतल में पुरानी शराब ही है और मोदी जी के खाने के और दिखने के दांत अलग हैं तो ये जितना मर्जी देश का ध्रुवीकरण कर लें और जितने मर्ज़ी बाहुबली पार्टी में बना लें, जनता और बाकि पार्टियां चूड़ियाँ पहन नाच नहीं करें गी बल्कि भाजपा को और जगह भी वैसे ही मुजरा करवा दें गी जैसे की बिहार में लालू नितीश की जादू की जफी ने करवाया। अगर भाजपा ने बदमाशी को वहां तक खींचने की कोशिस की के वो संविधानछेदन पे उतर आई तो इस उभरते हुए युवा देश को खूनी राजनीतिक संघर्षों से कोई नहीं बचा सकता। ...कवी बलवंत गुरने 

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