1. भोपाल से साध्वी प्रज्ञा को भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया, जिस ने अपने प्रचार के शुरुआती दौर में ही शहीद हेमंत करकरे की पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा निर्मम हत्या को, न केवल सही, बताया, बल्कि अपने द्वारा दिए गए श्राप का ही फल बताया, और फिर यह अती निंदनीय बयान वापिस ले लिया, और इस तरह देश वासियों का ध्यान एक बार फ़िर बड़े मुद्दों से हटा कर बेमतलब बयानबाज़ी में उलझा दिया। यह एक पुराना पैंतरा है, मूर्ख वोटरों की वोट खींच कर सत्ता पाने की करकट राजनीति का हिस्सा है।
2. भाजपा ने पहले तो बयान से किनारा किया, और बाद में यह कह कर दामन झाड़ लिया, की प्रज्ञा व्यक्तिगत तौर पे भारी मानसिक और शारीरिक दबाव में से निकली हैं, तो यह बयान प्रज्ञा का व्यक्तिगत मामला है। यानी शहीद करकरे की शहादत को गाली देने वाली साध्वी का जलेबी समर्थन।
3. प्रधानमंत्री ने टाइम्स के साथ हुई इंटरव्यू में इस विषय पर बोलते हुए प्रज्ञा के बयान को नजरंदाज कर के, 'बेल पे और लोग भी चुनाव लड़ रहे हैं,' इत्यादि इत्यादि की ओर ध्यान मोड़ दिया। प्रधान मंत्री की मजबूरी राजनीतिक है। दुबारा सत्ता पाने के लिए, भोपाल हो या चौपाल, प्रज्ञा हो या अवज्ञा, प्रधानमंत्री को ज्यादा से ज्यादा जीते हुए सांसद चाहिए, जो पुनः भाई की ताजपोशी में सहायक हो सकें।
4. यानी पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में राष्ट्रपति व्यवस्था की तरह चुनाव लड़ा जा रहा है। यानी व्यवस्था के गलत प्रचार और प्रचलन के चलते, देश की अब तक की सभी राजनीतिक पार्टियों की सरकारों ने देश की जनता को, ना गधा, ना घोड़ा, बल्कि भार उठाने वाली बांझ सी खच्चर बना के रख दिया है, जिस का काम है, अपनी मेहनत की कमाई पर राजनैतिक सफ़ेद हाथियों की फौज के लिए टैक्स का राशन ढोना, और ढोते चले जाना, ढोते चले जाना, और ढोते ही चले जाना ।
5. चर्चिल ने कहा था आज़ादी के 60 साल बाद भारत पर thieves और thugs rule करें गे। वह दिख रहा है। उस ने यह इस लिए कहा था, क्यों कि वह जानता था, जिस किस्म की पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी की व्यवस्था भारत की जनता को दी जा रही है, उस के लिए अभी जनता शिक्षित और जागरूक ही नहीं है।
6. जहां लोगों को यह ही नहीं पता कि वह प्रधानमंत्री का चुनाव या मुख्यमंत्री का चुनाव कर के नहीं, बल्कि अपने इलाके के लिए एक अच्छा सांसद या विधायक चुन कर, देश की व्यवस्था और प्रशाषण के सुचारू संचालन में बेहतर योगदन कर सकते हैं, वह यह कैसे समझें गे कि, चोरों और ठगों की बारात का दूल्हा चाहे कोई भी है, फ़र्क नहीं पड़ता, क्यों कि चोरों का सरदार अलीबाबा, इन्हीं सब 272 चोरों के कंधो पे बैठ कर ही तो सत्ता पाना चाहता है।
7. मेरा सविनय निवेदन केवल इतना है, कि यदि मोदी राष्ट्रपति प्रणाली के चुनाव जैसे चुनाव जीत कर पुनः सत्ता में आते हैं, तो कम से कम, इतनी इमानदारी तो दिखाएं कि व्यवस्था को राष्ट्रपति व्यवस्था ही में बदल दें। अमेरिका जैसी हरामी व्यवस्था नहीं, बल्कि केवल शुद्ध रूप में, सभी प्रत्याशियों में से एक व्यक्ति का चुनाव, शीर्ष पद के लिए, और फिर 4 साल तक सब कुछ उस पे छोड़ दिया जाए, वह जिसे चाहे, काबिलियत के हिसाब से, सरकारी महकमों का प्रमुख बनाए, और फ़िर दबा के डंडा चलाए, और खुद केवल गुड गवर्नेंस एश्योर करे, और इस तरह 543 एमपी और हजारों विधायकों का भार देश की व्यवस्था से उतार फेंके। कानून कौन बनाए गा, यह एक अहम सवाल है, लेकिन अब कौन बना रहा है, यह भी तो इक सवाल है। वक़्त के साथ यह सवाल आसानी से हल कर लिया जाए गा।
⏯ यही होने भी जा रहा है। ⏮
🚩सत्य ही ईश्वर है 🚩
🎙✒गुरू बलवंत गुरुने 📚⚔
2. भाजपा ने पहले तो बयान से किनारा किया, और बाद में यह कह कर दामन झाड़ लिया, की प्रज्ञा व्यक्तिगत तौर पे भारी मानसिक और शारीरिक दबाव में से निकली हैं, तो यह बयान प्रज्ञा का व्यक्तिगत मामला है। यानी शहीद करकरे की शहादत को गाली देने वाली साध्वी का जलेबी समर्थन।
3. प्रधानमंत्री ने टाइम्स के साथ हुई इंटरव्यू में इस विषय पर बोलते हुए प्रज्ञा के बयान को नजरंदाज कर के, 'बेल पे और लोग भी चुनाव लड़ रहे हैं,' इत्यादि इत्यादि की ओर ध्यान मोड़ दिया। प्रधान मंत्री की मजबूरी राजनीतिक है। दुबारा सत्ता पाने के लिए, भोपाल हो या चौपाल, प्रज्ञा हो या अवज्ञा, प्रधानमंत्री को ज्यादा से ज्यादा जीते हुए सांसद चाहिए, जो पुनः भाई की ताजपोशी में सहायक हो सकें।
4. यानी पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में राष्ट्रपति व्यवस्था की तरह चुनाव लड़ा जा रहा है। यानी व्यवस्था के गलत प्रचार और प्रचलन के चलते, देश की अब तक की सभी राजनीतिक पार्टियों की सरकारों ने देश की जनता को, ना गधा, ना घोड़ा, बल्कि भार उठाने वाली बांझ सी खच्चर बना के रख दिया है, जिस का काम है, अपनी मेहनत की कमाई पर राजनैतिक सफ़ेद हाथियों की फौज के लिए टैक्स का राशन ढोना, और ढोते चले जाना, ढोते चले जाना, और ढोते ही चले जाना ।
5. चर्चिल ने कहा था आज़ादी के 60 साल बाद भारत पर thieves और thugs rule करें गे। वह दिख रहा है। उस ने यह इस लिए कहा था, क्यों कि वह जानता था, जिस किस्म की पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी की व्यवस्था भारत की जनता को दी जा रही है, उस के लिए अभी जनता शिक्षित और जागरूक ही नहीं है।
6. जहां लोगों को यह ही नहीं पता कि वह प्रधानमंत्री का चुनाव या मुख्यमंत्री का चुनाव कर के नहीं, बल्कि अपने इलाके के लिए एक अच्छा सांसद या विधायक चुन कर, देश की व्यवस्था और प्रशाषण के सुचारू संचालन में बेहतर योगदन कर सकते हैं, वह यह कैसे समझें गे कि, चोरों और ठगों की बारात का दूल्हा चाहे कोई भी है, फ़र्क नहीं पड़ता, क्यों कि चोरों का सरदार अलीबाबा, इन्हीं सब 272 चोरों के कंधो पे बैठ कर ही तो सत्ता पाना चाहता है।
7. मेरा सविनय निवेदन केवल इतना है, कि यदि मोदी राष्ट्रपति प्रणाली के चुनाव जैसे चुनाव जीत कर पुनः सत्ता में आते हैं, तो कम से कम, इतनी इमानदारी तो दिखाएं कि व्यवस्था को राष्ट्रपति व्यवस्था ही में बदल दें। अमेरिका जैसी हरामी व्यवस्था नहीं, बल्कि केवल शुद्ध रूप में, सभी प्रत्याशियों में से एक व्यक्ति का चुनाव, शीर्ष पद के लिए, और फिर 4 साल तक सब कुछ उस पे छोड़ दिया जाए, वह जिसे चाहे, काबिलियत के हिसाब से, सरकारी महकमों का प्रमुख बनाए, और फ़िर दबा के डंडा चलाए, और खुद केवल गुड गवर्नेंस एश्योर करे, और इस तरह 543 एमपी और हजारों विधायकों का भार देश की व्यवस्था से उतार फेंके। कानून कौन बनाए गा, यह एक अहम सवाल है, लेकिन अब कौन बना रहा है, यह भी तो इक सवाल है। वक़्त के साथ यह सवाल आसानी से हल कर लिया जाए गा।
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🚩सत्य ही ईश्वर है 🚩
🎙✒गुरू बलवंत गुरुने 📚⚔
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